Top 5 Most beautiful cities of the world.

1. PARIS-FRANCE 

2. CAPE TOWN-SOUTH AFRICA


3.CARTEGENA-COLUMBIA

4. FLORENCE-ITALY


5. ISTANBUL-TURKEY




 

        

          Jagannath Puri Rath Yatra 2023 

The annual Puri Rath Yatra, also known as the Puri Chariot Festival, is held in Odisha. One of the largest Hindu festivals, the Jagannath Puri Rath Yatra 2023, will begin on Tuesday, June 20, 2023, at the well-known Jagannatha temple in Puri, Odisha, India. The Puri Yatra typically starts on the Dwitiya Tithi (second day) and Shukla Paksha (waxing phase of the Moon) in the Hindu month of Aashadha.

वार्षिक पुरी रथ यात्रा, जिसे पुरी रथ महोत्सव के रूप में भी जाना जाता है, ओडिशा में आयोजित की जाती है। सबसे बड़े हिंदू त्योहारों में से एक, जगन्नाथ पुरी रथ यात्रा 2023, मंगलवार, 20 जून, 2023 को भारत के ओडिशा के पुरी में प्रसिद्ध जगन्नाथ मंदिर में शुरू होगी। पुरी यात्रा आमतौर पर आषाढ़ के हिंदू महीने में द्वितीया तिथि (दूसरे दिन) और शुक्ल पक्ष (चंद्रमा के एपिलेशन चरण) पर शुरू होती है।

The Chariot Festival, or Jaggarnath Puri Yatra 2023 is a highly anticipated and exciting religious event in India. This grand festival, held in the holy city of Puri in the state of Odisha, attracts millions of devotees from around the world. With its rich history dating back centuries, the Rath Yatra honors Lord Jagannath, an incarnation of Lord Vishnu, and his divine siblings, Lord Balabhadra and Goddess Subhadra.

रथ महोत्सव, या जगन्नाथ पुरी रथ यात्रा 2023, भारत में एक बहुप्रतीक्षित और रोमांचक धार्मिक आयोजन है। ओडिशा राज्य के पवित्र शहर पुरी में आयोजित होने वाला यह भव्य उत्सव दुनिया भर से लाखों भक्तों को आकर्षित करता है। सदियों पुराने अपने समृद्ध इतिहास के साथ, रथ यात्रा भगवान जगन्नाथ, भगवान विष्णु के अवतार, और उनके दिव्य भाई-बहन, भगवान बलभद्र और देवी सुभद्रा का सम्मान करती है।


How is Rath Yatra celebrated?

  • Rath Yatra is celebrated in the holy city of Puri, Odisha, India.
  • The festival commemorates Lord Jagannath’s journey from the Jagannath Temple to the Gundicha Temple.
  • Three grand chariots, representing Lord Jagannath, Lord Balabhadra, and Goddess Subhadra, are constructed and decorated.
  • Devotees gather to pull the chariots through the streets of Puri using thick ropes.
  • The procession is accompanied by chanting of religious hymns, playing traditional musical instruments, and lively folk dances.
  • People line the streets to catch a glimpse of the deities and seek their blessings.
  • Devotees offer prayers, flowers, and sweets to the gods during the procession.
  • The festival promotes inclusiveness, as people from all backgrounds and walks of life can participate in pulling the chariots.
  • The streets of Puri are adorned with vibrant decorations, rangoli designs, and traditional arts and crafts stalls.
  • Cultural programs, including traditional dance performances like Odissi, showcase the rich heritage of Odisha.
  • The festival culminates with the return of the deities to the Jagannath Temple after a nine-day stay at the Gundicha Temple.

कैसे मनाई जाती है रथ यात्रा?
* रथ यात्रा पवित्र शहर पुरी, ओडिशा, भारत में मनाई जाती है।
* यह त्योहार भगवान जगन्नाथ की जगन्नाथ मंदिर से गुंडिचा मंदिर तक की यात्रा की याद दिलाता है।
* भगवान जगन्नाथ, भगवान बलभद्र और देवी सुभद्रा का प्रतिनिधित्व करने वाले तीन भव्य रथों का निर्माण और सजावट की जाती है।
* भक्त मोटी रस्सियों का उपयोग करके रथों को पुरी की सड़कों से खींचने के लिए इकट्ठा होते हैं।
* जुलूस के साथ धार्मिक भजनों का जाप, पारंपरिक वाद्य यंत्र बजाना और जीवंत लोक नृत्य होते हैं।
* लोग देवी-देवताओं की एक झलक पाने और उनका आशीर्वाद लेने के लिए सड़कों पर लाइन लगाते हैं।
* जुलूस के दौरान भक्त देवताओं को प्रार्थना, फूल और मिठाई चढ़ाते हैं।
* त्योहार समावेशिता को बढ़ावा देता है, क्योंकि सभी पृष्ठभूमि और जीवन के लोग रथ खींचने में भाग ले सकते हैं।
* पुरी की सड़कें जीवंत सजावट, रंगोली डिजाइन और पारंपरिक कला और शिल्प स्टालों से सजी हैं।
* ओडिसी जैसे पारंपरिक नृत्य प्रदर्शन सहित सांस्कृतिक कार्यक्रम, ओडिशा की समृद्ध विरासत को प्रदर्शित करते हैं।
* गुंडिचा मंदिर में नौ दिनों के प्रवास के बाद जगन्नाथ मंदिर में देवताओं की वापसी के साथ त्योहार का समापन होता है।


Jagannath Puri Rath Yatra 2023 Significance

The Jagannath Puri Rath Yatra 2023 holds immense significance as it honors Lord Jagannath, an incarnation of Lord Vishnu, and his divine siblings. The festival symbolizes the journey of Lord Jagannath from the Jagannath Temple to the Gundicha Temple. It represents devotion, inclusiveness, and the unity of people from diverse backgrounds. The Rath Yatra is a cherished event that strengthens spiritual connections and celebrates the rich cultural heritage of Odisha.


जगन्नाथ पुरी रथ यात्रा 2023 का महत्व
जगन्नाथ पुरी रथ यात्रा 2023 का अत्यधिक महत्व है क्योंकि यह भगवान विष्णु के अवतार भगवान जगन्नाथ और उनके दिव्य भाई-बहनों का सम्मान करती है। यह त्योहार जगन्नाथ मंदिर से गुंडिचा मंदिर तक भगवान जगन्नाथ की यात्रा का प्रतीक है। यह भक्ति, समग्रता और विविध पृष्ठभूमि के लोगों की एकता का प्रतिनिधित्व करता है। रथ यात्रा एक पोषित घटना है जो आध्यात्मिक संबंधों को मजबूत करती है और ओडिशा की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत का जश्न मनाती है।

 

 

Current Affair Quiz


Q1. Which agricultural product showed the highest growth in exports during April-May 2023 compared to April-May 2022?अप्रैल-मई 2022 की तुलना में अप्रैल-मई 2023 के दौरान किस कृषि उत्पाद के निर्यात में सर्वाधिक वृद्धि दर्ज की गई?
(a) Rice
(b) Fruits & Vegetables
(c) Spices
(d) Coffee
(e) Other Cereals
Q2. Who flagged off the 5000 km Motorcycle Expedition as part of the “Julley Ladakh” outreach program? "जूली लद्दाख" आउटरीच कार्यक्रम के हिस्से के रूप में 5000 किलोमीटर मोटरसाइकिल अभियान को किसने हरी झंडी दिखाई?
(a) Vice Admiral Sanjay Jasjit Singh
(b) General Manoj Pande
(c) Rajnath Singh
(d) Air Chief Marshal VR Chaudhari
(e) Admiral R Hari Kumar
Q3. Which country has topped in terms of highest digital payments recently?हाल ही में सबसे अधिक डिजिटल भुगतान के मामले में कौन सा देश शीर्ष पर रहा है?
(a)China (b)America (c)India (d)Nepal
Q4.Which city in India has proved to be the most expensive in the recent Mercer's Cost of Living survey?हाल ही में मर्सर के कॉस्ट ऑफ लिविंग सर्वे में भारत का कौन सा शहर सबसे महंगा साबित हुआ है?
(a) Delhi (b)Karnal (c) Mumbai (d) Kolkata
Q5.Where has the world's most powerful hypersonic wind tunnel been opened recently?हाल ही में विश्व की सबसे पावरफुल हाइपरसोनिक पवन सुरंग कहां खोली गई है?
(a)India (b) Nepal (c)China (d)Kuwait
Q6.In which state of India, a new species of flying lizard has been discovered?भारत के किस राज्य में उड़ने वाली छिपकली की एक नई प्रजाति की खोज की गई है?
(a) Nagaland
(b) Assam
(c) Kerala
(d) Mizoram
Q7. Where is the capital of Afghanistan?अफगानिस्तान की राजधानी कहाँ है?
(a) kabul
(b)Islamabad
(c)Patna
(d)Ranchi
Q8.Who is the prime minister of India?भारत का प्रधानमंत्री कौन है?
(a)Gulzarilal Nanda
(b)Indira Gandhi (c)Rajiv Gandhi (d)Narendra Modi


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Folk dances of India


1.Andhra Pradesh Kuchipudi, Vilasini Natyam, Andhra Natyam, Bhamakalpam, Veeranatyam,

2.Assam Bihu, Bichhua, Natpuja, Maharas, Kaligopal, Bagurumba, Naga dance, Khel
3.Bihar Jata-Jatin, Bakho-Bakhain, Panwariya, Sama Chakwa, Bidesia.

4.Gujarat Garba, Dandiya Ras, Tippani Juriun, Bhavai.

5.Haryana Jhumar, Phag, Daph, Dhamal, Loor, Gugga, Khor, Gagor.

6.Himachal Pradesh Jhora, Jhali, Chharhi, Dhaman, Chhapeli, Mahasu, Nati, Dangi.

7.Jammu and Kashmir Rauf, Hikat, Mandjas, Kud Dandi Nach, Damali.

8.Karnataka Yakshagan, Huttari, Suggi, Kunitha, Karga, Lambi

9.Kerala Kathakali (Classical), Ottam Thulal, Mohiniattam, Kaikottikali.

10.Maharashtra Lavani, Nakata, Koli, Lezim, Gafa, Dahikala Dasavtar or Bohada.

11.Odisha Odissi (Classical), Savari, Ghumara, Painka, Munari, Chhau.

12.West Bengal Kathi, Gambhira, Dhali, Jatra, Baul, Marasia, Mahal, Keertan.

13.Punjab Bhangra, Giddha, Daff, Dhaman, Bhand, Naqual.

14.Rajasthan Ghumar, Chakri, Ganagor, Jhulan Leela, Jhuma, Suisini, Ghapal, Kalbeliya.

15.Tamil Nadu Bharatanatyam, Kumi, Kolattam, Kavadi.

16.Uttar Pradesh Nautanki, Raslila, Kajri, Jhora, Chappeli, Jaita.

17.Meghalaya Ka Shad Suk Mynsiem, Nongkrem, Laho.

18.Nagaland Rangma, Bamboo Dance, Zeliang, Nsuirolians, Gethinglim, Temangnetin,
19.Tripura Hojagiri.

20.Jharkhand Alkap, Karma Munda, Agni, Jhumar, Janani Jhumar, Mardana Jhumar

तानाशाह अडोल्फ हिटलर [Adolf Hitler] की कहानी | Biography in Hindi | History | Facts | Politician

 

अडोल्फ हिटलर का जन्म आस्ट्रिया के वॉन नामक स्थान पर 20 अप्रैल 1889 को हुआ। उनकी प्रारंभिक शिक्षा लिंज नामक स्थान पर हुई। पिता की मृत्यु के पश्चात् 17 वर्ष की अवस्था में वे वियना चले गए। कला विद्यालय में प्रविष्ट होने में असफल होकर वे पोस्टकार्डों पर चित्र बनाकर अपना निर्वाह करने लगे। जब प्रथम विश्वयुद्ध प्रारंभ हुआ तो वे सेना में भर्ती हो गए और फ्राँस में कई लड़ाइयों में उन्होंने भाग लिया। 1918 ई॰ में युद्ध में घायल होने के कारण वे अस्पताल में रहे। जर्मनी की पराजय का उनको बहुत दु:ख हुआ।

1918 ई॰ में उन्होंने नाज़ी दल की स्थापना की। इसके सदस्यों में देशप्रेम कूट-कूटकर भरा था। इस दल ने यहूदियों को प्रथम विश्वयुद्ध की हार के लिए दोषी ठहराया। आर्थिक स्थिति खराब होने के कारण जब नाज़ी दल के नेता हिटलर ने अपने ओजस्वी भाषणों में उसे ठीक करने का आश्वासन दिया तो अनेक जर्मन इस दल के सदस्य हो गए। हिटलर ने भूमिसुधार करने, वर्साई संधि को समाप्त करने और एक विशाल जर्मन साम्राज्य की स्थापना का लक्ष्य जनता के सामने रखा जिससे जर्मन लोग सुख से रह सकें। इस प्रकार 1922 ई. में हिटलर एक प्रभावशाली व्यक्ति हो गए। उन्होंने स्वस्तिक को अपने दल का चिह्र बनाया, समाचारपत्रों के द्वारा हिटलर ने अपने दल के सिद्धांतों का प्रचार जनता में किया। भूरे रंग की पोशाक पहने सैनिकों की टुकड़ी तैयार की गई। 1923 ई. में हिटलर ने जर्मन सरकार को उखाड़ फेंकने का प्रयत्न किया। इसमें वे असफल रहे और जेलखाने में डाल दिए गए। वहीं उन्होंने मीन कैम्फ ("मेरा संघर्ष") नामक अपनी आत्मकथा लिखी। इसमें नाज़ी दल के सिद्धांतों का विवेचन किया। उन्होंने लिखा कि जर्मन जाति सभी जातियों से श्रेष्ठ है। उन्हें विश्व का नेतृत्व करना चाहिए। यहूदी सदा से संस्कृति में रोड़ा अटकाते आए हैं। जर्मन लोगों को साम्राज्यविस्तार का पूर्ण अधिकार है। फ्रांस और रूस से लड़कर उन्हें जीवित रहने के लिए भूमि प्राप्ति करनी चाहिए। 1930-32 में जर्मनी में बेरोज़गारी बहुत बढ़ गई। संसद् में नाज़ी दल के सदस्यों की संख्या 230 हो गई। 1932 के चुनाव में हिटलर को राष्ट्रपति के चुनाव में सफलता नहीं मिली। जर्मनी की आर्थिक दशा बिगड़ती गई और विजयी देशों ने उसे सैनिक शक्ति बढ़ाने की अनुमति की। 1933 में चांसलर बनते ही हिटलर ने जर्मन संसद् को भंग कर दिया, साम्यवादी दल को गैरकानूनी घोषित कर दिया और राष्ट्र को स्वावलंबी बनने के लिए ललकारा। हिटलर ने डॉ॰ जोज़ेफ गोयबल्स को अपना प्रचारमंत्री नियुक्त किया। नाज़ी दल के विरोधी व्यक्तियों को जेलखानों में डाल दिया गया। कार्यकारिणी और कानून बनाने की सारी शक्तियाँ हिटलर ने अपने हाथों में ले ली। 1934 में उन्होंने अपने को सर्वोच्च न्यायाधीश घोषित कर दिया। उसी वर्ष हिंडनबर्ग की मृत्यु के पश्चात् वे राष्ट्रपति भी बन बैठे। नाज़ी दल का आतंक जनजीवन के प्रत्येक क्षेत्र में छा गया। 1933 से 1938 तक लाखों यहूदियों की हत्या कर दी गई। नवयुवकों में राष्ट्रपति के आदेशों का पूर्ण रूप से पालन करने की भावना भर दी गई और जर्मन जाति का भाग्य सुधारने के लिए सारी शक्ति हिटलर ने अपने हाथ में ले ली। हिटलर ने 1933 में राष्ट्रसंघ को छोड़ दिया और भावी युद्ध को ध्यान में रखकर जर्मनी की सैन्य शक्ति बढ़ाना प्रारंभ कर दिया। प्राय: सारी जर्मन जाति को सैनिक प्रशिक्षण दिया गया। 1934 में जर्मनी और पोलैंड के बीच एक-दूसरे पर आक्रमण न करने की संधि हुई। उसी वर्ष आस्ट्रिया के नाज़ी दल ने वहाँ के चांसलर डॉलफ़स का वध कर दिया। जर्मनीं की इस आक्रामक नीति से डरकर रूस, फ्रांस, चेकोस्लोवाकिया, इटली आदि देशों ने अपनी सुरक्षा के लिए पारस्परिक संधियाँ कीं। उधर हिटलर ने ब्रिटेन के साथ संधि करके अपनी जलसेना ब्रिटेन की जलसेना का 35 प्रतिशत रखने का वचन दिया। इसका उद्देश्य भावी युद्ध में ब्रिटेन को तटस्थ रखना था किंतु 1935 में ब्रिटेन, फ्रांस और इटली ने हिटलर की शस्त्रीकरण नीति की निंदा की। अगले वर्ष हिटलर ने बर्साई की संधि को भंग करके अपनी सेनाएँ फ्रांस के पूर्व में राइन नदी के प्रदेश पर अधिकार करने के लिए भेज दीं। 1937 में जर्मनी ने इटली से संधि की और उसी वर्ष आस्ट्रिया पर अधिकार कर लिया। हिटलर ने फिर चेकोस्लोवाकिया के उन प्रदेशों को लेने की इच्छा की जिनके अधिकतर निवासी जर्मन थे। ब्रिटेन, फ्रांस और इटली ने हिटलर को संतुष्ट करने के लिए म्यूनिक के समझौते से चेकोस्लोवाकिया को इन प्रदेशों को हिटलर को देने के लिए विवश किया। 1939 में हिटलर ने चेकोस्लोवाकिया के शेष भाग पर भी अधिकार कर लिया। फिर हिटलर ने रूस से संधि करके पोलैड का पूर्वी भाग उसे दे दिया और पोलैंड के पश्चिमी भाग पर उसकी सेनाओं ने अधिकार कर लिया। ब्रिटेन ने पोलैंड की रक्षा के लिए अपनी सेनाएँ भेजीं। इस प्रकार द्वितीय विश्वयुद्ध प्रारंभ हुआ। फ्रांस की पराजय के पश्चात् हिटलर ने मुसोलिनी से संधि करके रूम सागर पर अपना आधिपत्य स्थापित करने का विचार किया। इसके पश्चात् जर्मनी ने रूस पर आक्रमण किया। जब अमरीका द्वितीय विश्वयुद्ध में सम्मिलित हो गया तो हिटलर की सामरिक स्थिति बिगड़ने लगी। हिटलर के सैनिक अधिकारी उनके विरुद्ध षड्यंत्र रचने लगे। जब रूसियों ने बर्लिन पर आक्रमण किया तो हिटलर ने 30 अप्रैल 1945, को आत्महत्या कर ली। प्रथम विश्वयुद्ध के विजेता राष्ट्रों की संकुचित नीति के कारण ही स्वाभिमानी जर्मन राष्ट्र को हिटलर के नेतृत्व में आक्रमक नीति अपनानी पड़ी।

प्रथम विश्व युद्ध के पश्चात जहाँ एक ओर तानाशाही प्रवृति का उदय हुआ। वहीं दूसरी ओर जर्मनी में हिटलर के नेतृत्व में नाज़ी दल की स्थापना हुई। जर्मनी के इतिहास में हिटलर का वही स्थान है जो फ्राँस में नेपोलियन बोनापार्ट का, इटली में मुसोलनी का और तुर्की में मुस्तफा कमालपाशा का। हिटलर के पदार्पण के फलस्वरुप जर्मनी का कायाकल्प हो सका। उन्होने असाधारण योग्यता, विलक्षण प्रतिभा और राजनीतिक कटुता के कारण जर्मनी गणतंत्र पर अपना आधिपत्य कायम कर लिया तथा जर्मनी में हिटलर का अभ्युदय और शक्ति की प्राप्ति एकाएक नहीं हुई। उनकी शक्ति का विकास धीरे- 2 हुआ। उनका जन्म 1889 ई॰ में आस्ट्रिया के एक गाँव में हुआ था। आर्थिक कठिनाइयों के कारण उनकी शिक्षा अधूरी रह गई। वे वियेना में भवन निर्माण कला की शिक्षा लेना चाहते थे। लेकिन उसके भाग्य में तो जर्मनी का पुनर्निर्माण लिखा था। प्रथम विश्व युद्ध से ही उनका भाग्योदय होने लगा। वे जर्मन सेना में भर्ती हो गए। उन्हें बहादुरी के लिए Iron Cross की उपाधि मिली। युद्ध समाप्ति के पश्चात् उन्होंने सक्रिय राजनीति में अभिरुची लेना शुरु किया।

एक राजनीतिक विचारधारा जिसे जर्मनी के तनाशाह हिटलर ने प्रारंभ किया था। हिटलर का मानना था कि जर्मन आर्य है और विश्व में सर्वश्रेष्ठ हैं। इसलिए उनको सारी दुनिया पर राज्य करने का अधिकार है। अपने तानाशाहीपूर्ण आचरण से उसने विश्व को द्वितीय विश्व युद्ध में झोंक दिया था। १९४५ में हिटलर के मरने के साथ ही नाज़ीवाद का अंत हो गया परन्तु ‘नाज़ीवाद’ और ‘हिटलर होना’ मानवीय क्रूरता के पर्याय बन कर आज भी भटक रहे है।
हिटलर का जन्म १८८९ में आस्ट्रिया में हुआ था। १२ वर्ष की आयु में उसके पिता का निधन हो गया था जिससे उसे आर्थिक संकटों से जूझना पड़ा। उसे चित्रकला में बहुत रूचि थी। उसने चित्रकला पढ़ने के लिए दो बार प्रयास किये परन्तु उसे प्रवेश नहीं मिल सका। बाद में उसे मजदूरी तथा घरों में पेंट करके जीवन यापन करना पड़ा। प्रथम विश्व युद्ध प्रारंभ होने पर वह सेना में भरती हो गया। वीरता के लिए उसे हल क्रास से सम्मानित किया गया। युद्ध समाप्त होने पर वह एक दल जर्मन लेबर पार्टी में सम्मिलित हो गया जिसमें मात्र २०-२५ लोग थे। हिटलर के भाषणों से अल्प अवधि में ही उसके सदस्यों की संख्या हजारों में पहुँच गई। पार्टी का नया नाम रखा गया ‘नेशनल सोशलिस्ट जर्मन लेबर पार्टी’। जर्मन में इसका संक्षेप में नाम है ‘नाज़ी पार्टी’। हिटलर द्वारा प्रतिपादित इसके सिद्धांत ही नाज़ीवाद कहलाते हैं।
हिटलर ने जर्मन सरकार के विरुद्ध विद्रोह का प्रयास किया। उसे बंदी बना लिया गया और ५ वर्ष की जेल हुई। जेल में उसने अपनी आत्म कथा ‘मेरा संघर्ष’ लिखी। इस पुस्तक में उसके विचार दिए हुए हैं। इस पुस्तक की लाखों प्रतियाँ शीघ्र बिक गईं जिससे उसे बहुत ख्याति मिली। उसकी नाज़ी पार्टी को पहले तो चुनावों में कम सीटें मिलीं परन्तु १९३३ तक उसने जर्मनी की सत्ता पर पूरा अधिकार कर लिया और एक छत्र तानाशाह बन गया। उसने अपने आसपास के देशों पर कब्जे करने शूरू कर दिए जिससे दूसरा विश्व युद्ध प्रारम्भ हो गया। वह यहूदियों से बहुत घृणा करता था। उसने उन पर बहुत अत्याचार किये, कमरों में ठूँसकर विषैली गैस से हजारों लोग मार दिए गए। ६ वर्षों के युद्ध के बाद वह हार गया और उसने अपनी प्रेमिका, जिसके साथ उसने एक-दो दिन पहले ही विवाह किया था, के साथ गोली मारकर आत्महत्या कर ली।

नाज़ीवाद के उदय के कारण[संपादित करें]

प्रथम विश्व युद्ध 1914 से 1918 तक चला। इसमें जर्मनी हार गया। युद्ध के कारण उसकी बहुत क्षति हुई। इन सब के ऊपर ब्रिटेन, फ़्राँस आदि मित्र राष्ट्रों ने उस पर बहुत अधिक दंड लगा दिए। उसकी सेना बहुत छोटी कर दी, उसकी प्रमुख खदानों पर कब्ज़ा कर लिया तथा इतना अधिक अर्थ दंड लगा दिया कि अनेक वर्षों तक अपनी अधिकांश कमाई देने के बाद भी कर्जा कम नहीं हो रहा था। १९१४ में एक डालर = ४.२ मार्क था जो १९२१ में ६० मार्क, नवम्बर १९२२ में ७०० मार्क,जुलाई १९२३ में एक लाख ६० हजार मार्क तथा नवम्बर १९२३ में एक डालर = २५ ख़रब २० अरब मार्क के बराबर हो गया। अर्थात मार्क लगभग शून्य हो गया जिससे मंदी, मँहगाई और बेरोजगारी का अभूतपूर्व संकट पैदा हो गया। उस समय चुनी हुई सरकार के लोग अपना जीवन तो ठाट-बाट से बिता रहे थे परन्तु देश की समस्याएँ कैसे हल करें, उन्हें न तो इसका ज्ञान था और न ही बहुत चिंता थी। ऐसे समय में हिटलर ने अपने ओजस्वी भाषणों से जनता को समस्याएँ हल करने का पूरा विश्वास दिलाया। इसके साथ ही उसके विशेष रूप से प्रशिक्षित कमांडों, विरोधियों को मारने तथा आतंक फ़ैलाने के काम भी कर रहे थे जिससे उसकी पार्टी को धीरे- धीरे सत्ता में भागीदारी मिलती गई और एक बार चांसलर (प्रधान मंत्री) बनने के बाद उसने सभी विरोधियों का सफाया कर दिया और संसद की सारी शक्तियाँ अपने हाथों में केन्द्रित कर लीं। उसके बाद वे देश के राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री सबकुछ बन गए। उन्हें फ्यूरर कहा जाता था।


हिटलर से 11वर्ष पूर्व इटली के प्रधानमंत्री मुसोलिनी भी अपने फ़ासीवादी विचारों के साथ तानाशाही पूर्ण शासन चला रहे थे। दोनों विचारधाराएँ समग्र अधिकारवादी, अधिनायकवादी, उग्र सैनिकवादी, साम्राज्यवादी, शक्ति एवं प्रबल हिंसा की समर्थक, लोकतंत्र एवं उदारवाद की विरोधी, व्यक्ति की समानता, स्वतंत्रता एवं मानवीयता की पूर्ण विरोधी तथा राष्ट्रीय समाजवाद (अर्थात राष्ट्र ही सब कुछ है, व्यक्ति के सारे कर्तव्य राष्ट्रीय हित में कार्य करने में हैं) की कट्टर समर्थक हैं। ये सब समानताएं होते हुए भी जर्मनी ने अपने सिद्धांत फासीवाद से नहीं लिए। इसका विधिवत प्रतिपादन १९२० में गाटफ्रीड ने किया था जिसका विस्तृत विवरण हिटलर ने अपनी पुस्तक ‘मेरा संघर्ष’ में किया तथा १९३० में ए॰ रोज़नबर्ग ने पुनः इसकी व्याख्या की थी। इस प्रकार हिटलर के सत्ता में आने के पूर्व ही नाज़ीवाद के सिद्धांत स्पष्ट रूप से लोगों के सामने थे जबकि अपने कार्यों को सही सिद्ध करने के लिए मुसोलिनी ने सत्ता में आने के बाद अपने फ़ासीवादी सिद्धांतों को प्रतिपादित किया था। इतना ही नहीं जर्मनों की श्रेष्ठता का वर्णन अनेक विद्वान् करते आ रहे थे और १०० वर्षों से भी अधिक समय से जर्मनों के मन में अपनी श्रेष्ठता के विचार पनप रहे थे जिन्हें हिटलर ने मूर्त रूप प्रदान किया।


प्रजातिवाद : १८५४ में फ्रेंच लेखक गोबिनो ने १८५४ तथ 1884 में अपने निबंध ‘मानव जातियों की असमानता’ में यह सिद्धांत प्रतिपादित किया था कि विश्व की सभी प्रजातियों में गोरे आर्य या ट्यूटन नस्ल सर्वश्रेष्ठ है। १८९९ में ब्रिटिश लेखक चैम्बरलेन ने इसका अनुमोदन किया। जर्मन सम्राट कैसर विल्हेल्म द्वितीय ने देश में सभी पुस्तकालयों में इसकी पुस्तक रखवाई तथा लोगों को इसे पढ़ने के लिए प्रेरित किया। अतः जर्मन स्वयं को पहले से ही सर्व श्रेष्ठ मानते थे। नाज़ीवाद में इस भावना को प्रमुख स्थान दिया गया।
हिटलर ने यह विचार रखा कि उनके अतिरिक्त अन्य गोरे लोग भी मिश्रित प्रजाति के हैं अतः जर्मन लोगों को यह नैसर्गिक अधिकार है कि वे काले एवं पीले लोगों पर शासन करें, उन्हें सभ्य बनाएं इससे हिटलर ने यह स्वयं निष्कर्ष निकाल लिया कि उसे अन्य लोगों के देशों पर अधिकार करने का हक़ है। उसने लोगों का आह्वान किया कि श्रेष्ठ जर्मन नागरिक शुद्ध रक्त की संतान उत्पन्न करें। जर्मनी में अशक्त एवं रोगी लोगों के संतान उत्पन्न करने पर रोक लगा दी गई ताकि देश में भविष्य सदैव स्वस्थ एवं शुद्ध रक्त के बच्चे ही जन्म लें।
हिटलर का मानना था कि यहूदी देश का भारी शोषण कर रहे हैं। अतः वह उनसे बहुत घृणा करता था। परिणाम स्वरूप सदियों से वहाँ रहने वाले यहूदियों को अमानवीय यातनाएं दे कर मार डाला गया और उनकी संपत्ति राजसत कर ली गई। अनेक यहूदी देश छोड़ कर भाग गए। उस भीषण त्रासदी ने यहूदियों के सामने अपना पृथक देश बनाने की चुनौती उत्पन्न कर दी जिससे इस्रायल का निर्माण हुआ।
राज्य सम्बन्धी विचार : नाज़ीवाद में राज्य को साधन के रूप में स्वीकार किया गया है जिसके माध्यम से लोग प्रगति करेंगे। हिटलर के मतानुसार राष्ट्रीयता पर आधारित राज्य ही शक्तिशाली बन सकता है क्योंकि उसमें नस्ल, भाषा, परंपरा, रीति-रिवाज आदि सभी सामान होने के कारण लोगों में सुदृढ़ एकता और सहयोग की भावना होती है जो विभिन्न भाषा, धर्म एवं प्रजाति के लोगों में होना संभव नहीं है। हिटलर ने सभी जर्मनों को एक करने के लिए अपने पड़ोसी देशों आस्ट्रिया, चेकोस्लोवाकिया आदि के जर्मन बहुल इलाकों को उन देशों पर दबाव डाल कर जर्मनी में मिला लिया तथा बाद में उनके पूरे देश पर ही कब्ज़ा कर लिया। अनेक देशों पर कब्ज़ा करने को नाजियों ने इसलिए आवश्यक बताया कि सर्वश्रेष्ठ होते हुए भी जर्मनों के पास भूमि एवं संसाधन बहुत कम हैं जबकि उनकी आबादी बढ़ रही है। समुचित जीवन निर्वाह के लिए अन्य देशों पर अधिकार करने के अतिरिक्त और कोई विकल्प नहीं है। इसलिए हिटलर एक के बाद दूसरे देश पर कब्जे करता चला गया।
जर्मनी में राज्य का अर्थ था हिटलर। वह देश, शासन, धर्म सभी का प्रमुख था। हिटलर को सच्चा देवदूत कहा जाता था। बच्चों को पाठशाला में पढ़ाया जाता था – “ हमारे नेता एडोल्फ़ हिटलर, हम सब आप से प्रेम करते हैं, आपके लिए प्रार्थना करते हैं, हम आपका भाषण सुनना चाहते हैं। हम आपके लिए कार्य करना चाहते हैं।” हिटलर ने अपने कमांडों के द्वारा आतंक का वातावरण पहले ही निर्मित कर दिया था। उसे जैसे ही सत्ता में भागीदारी मिली, उसने सर्व प्रथम विपक्षी दलों का सफाया कर दिया। एक राष्ट्र, एक दल, एक नेता का सिद्धांत उसने बड़ी क्रूरता पूर्वक लागू किया था। उसके विरोध का अर्थ था मृत्यु।


नाज़ीवाद के उदय के कारण[संपादित करें]

व्यक्ति का स्थान : नाज़ी कान्त तथा फिख्टे के इस विचार को मानते थे कि व्यक्ति के लिए सच्ची स्वतंत्रता इस बात में निहित है कि वह राष्ट्र के कल्याण के लिए कार्य करे। उनका कहना था कि एक जर्मन तब तक स्वतन्त्र नहीं हो सकता जब तक जर्मनी राजनीतिक और आर्थिक दृष्टि से स्वतन्त्र न हो जो उस समय वह वार्साय संधि की शर्तों के अनुसार नहीं था। नाजियों का एक ही नारा था कि व्यक्ति कुछ नहीं है, राष्ट्र सब कुछ है। अतः व्यक्ति को अपने सभी हित राष्ट्र के लिए बलिदान कर देने चाहिए। मित्र देशों के चंगुल से जर्मनी को मुक्त करने के लिए उस समय यह भावना आवश्यक भी थी। परन्तु नाजियों ने इसका विस्तार जीवन के सभी क्षेत्रों – शिक्षा, धर्म, साहित्य, संस्कृति, कलाओं, विज्ञान, मनोरंजन,अर्थ-व्यवस्था आदि सभी क्षेत्रों में कर दिया था। इससे सभी नागरिक नाज़ियो के हाथ के कठपुतले से बन गए थे।
बुद्धिवाद का विरोध : शापेनहार, नीत्शे, जेम्स, सोरेल, परेतो जैसे अनेक दार्शनिकों ने बुद्धिवाद के स्थान पर लोगों की सहज बुद्धि (इंस्टिंक्ट), इच्छा शक्ति,और अंतर दृष्टि (इंट्यूशन)को उच्च स्थान दिया था। नाज़ी भी इसी विचार को मानते थे कि व्यक्ति अपनी बुद्धि से नहीं भावनाओं से कार्य करता है। इसलिए अधिकांश पढ़े-लिखे और सुशिक्षित व्यक्ति भी मूर्ख होते हैं। उनमें निष्पक्ष विचार करने की क्षमता नहीं होती है। वे अपने मामलों में भी बुद्धि पूर्वक विचार नहीं करते हैं। वे भावनाओं तथा पूर्व निर्मित अवधारणाओं के अधर पर कार्य करते हैं। इसलिए जनता को यदि अपने अनुकूल कर लिया जाये तो उस्से बड़े से बड़े झूठ को भी सत्य मनवाया जा सकता है। बुद्धि का उपयोग करके लोग परस्पर असहमति तो बढ़ा सकते हैं परन्तु किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुँच सकते हैं। अतः बुद्धिमानों को साथ लेकर एक सफल एवं शक्ति शाली संगठन नहीं बनाया जा सकता है। शक्ति शाली राष्ट्र निर्माण के लिए यह आवश्यक है कि लोगों को बुद्धमान बनाने के स्थान पर उत्तम नागरिक बनाया जाना चाहिए। उनके लिए तर्क एवं दर्शन के स्थान पर शारीरिक, नैतिक एवं औद्योगिक शिक्षा देनी चाहिए। उच्च शिक्षा केवल प्रजातीय दृष्टि से शुद्ध जर्मनों को ही दी जानी चाहिए जो राष्ट्र के प्रति अगाध श्रद्धा रखते हों। नेताओं को भी उतना ही बुद्धिवादी होना चाहिए कि वह जनता की मूर्खता से लाभ उठा सके और अपने कार्य क्रम बना सकें। अबुद्धिवाद से नाज़ियों ने अनेक महत्वपूर्ण परिणाम निकाले और अपनी पृथक राजनीतिक विचारधारा स्थापित की।
लोकतंत्र विरोधी : प्लेटो की भांति हिटलर भी लोकतंत्र का आलोचक था। उसके अनुसार अधिकांश व्यक्ति बुद्धि शून्य, मूर्ख, कायर और निकम्मे होते हैं जो अपना हित नहीं सोच सकते हैं। ऐसे लोगों का शासन कुछ भद्र लोगों द्वारा ही चलाया जाना चाहिए।
साम्यवाद विरोधी : साम्यवाद मानता है कि अर्थ या धन ही सभी कार्यों का प्रेरणा स्रोत है। धन के लिए ही व्यक्ति कार्य करता है और उसी के अनुसार सामाजिक तथा राजनीतिक व्यवस्थाएं निर्मित होती हैं। परन्तु अधिकांश व्यक्ति बुद्धिहीन होने के कारण अपना हित सोचने में असमर्थ होते हैं। उनके अनुसार साम्यवाद वर्तमान से भी बुरे शोषण को जन्म देगा।
अंध श्रद्धा (सोशल मिथ) : सोरेल की भांति हिटलर भी यही मानता था कि व्यक्ति बुद्धि और विवेक के स्थान पर अंध श्रद्धा से कार्य करता है। यह अंध श्रद्धा लोगों को राष्ट्र के लिए बड़े से बड़ा बलिदान करने के लिए प्रोत्साहित कर सके। नाज़ियों ने जर्मन लोगों में अनेक प्रकार की अंध श्रद्धाएँ उत्पन्न कीं और उन्हें राष्ट्र निर्माण में तत्पर कर दिया।
शक्ति और हिंसा का सिद्धांत : नाज़ियों ने लोगो में अन्द्ध श्रद्धा उत्पन्न कर दी कि जो लड़ना नहीं चाहता उसे इस दुनियां में जीवित रहने का कोई अधिकार नहीं है। इस सिद्धांत को प्रतिपादित करना हिटलर की मजबूरी भी थी क्योंकि प्रथम विश्व युद्ध के बाद हुई वार्साय की संधि में उस पर जो दंड एवं प्रतिबन्ध लगे थे, वार्ता द्वारा उससे बाहर निकलने का कोई मार्ग नहीं था। उन परिस्थितियों में युद्ध ही एक मात्र रास्ता था और उसके लिए सभी जर्मन वासियों का सहयोग आवश्यक था। इसलिए लोगों ने उसे सहयोग भी दिया।
अर्थव्यवस्था: वह साम्यवाद का विरोधी था इसलिए जर्मनी के पूंजीपतियों ने उसे पूरा सहयोग दिया। परन्तु उसका पूंजीवाद स्वच्छंद नहीं था, उसे मनमानी लूट और धन अर्जन का अधिकार नहीं था। वह उसी सीमा तक मान्य था जो नाज़ियों के सिद्धांत और जर्मन राष्ट्र के हित के अनुकूल हो।
उसने उत्पादन बढ़ने के लिए सभी तरह के आंदोलनों, प्रदर्शनों और हड़तालों पर प्रतिबन्ध लगा दिया था। सभी वर्गों के संगठन बना दिए गए थे जो विवाद होने पर न्यायोचित समाधान निकाल लेते थे ताकि किसी का भी अनावश्यक शोषण न हो। अधिक रोजगार देने के लिए उसने पहले एक परिवार एक नौकरी का सिद्धांत लागू किया, फिर अधिक वेतन वाले पदों का वेतन घटा कर एक के स्थान पर दो व्यक्तियों को रोजगार दिया। इस प्रकार उसने दो वर्षों में ही अधिकांश लोगों, जिनकी संख्या लाखों में थी, को रोजगार उपलब्ध कराये। इससे शिक्षा, व्यवसाय, कृषि, उद्योग, विज्ञान, निर्माण आदि सभी क्षेत्रों में जर्मनी ने अभूतपूर्ण उन्नति कर ली। १९३३ से लेकर १९३९ तक छः वर्षों में उसकी प्रगति का अनुमान इस तथ्य से लगाया जा सकता है कि जिस जर्मनी का कोष रिक्त हो चुका था, देश पर अरबों पौंड का कर्जा था, प्राकृतिक संसाधनों पर मित्र देशों ने कब्ज़ा कर लिया था और उसकी सेना नगण्य रह गई थी, वही जर्मनी विश्व के बड़े राष्ट्रों के विरुद्ध एक साथ आक्रमण करने की स्थिति में था, सभी देशों में हिटलर का आतंक व्याप्त था और वह इंग्लैंड, रूस तक अपने देश में बने विमानों से जर्मनी में ही निर्मित बड़े-बड़े बम गिरा रहा था। मात्र छः वर्षों में उसने इतना धन एवं शक्ति अर्जित कर ली थी जो अनेक वर्षों में भी संभव नहीं थी।
स्वयं को सर्वशक्तिमान समझने के कारण हिटलर युद्ध हार गया, उसने आत्म हत्या कर ली। पराजित हुआ व्यक्ति ही इतिहास में गलत माना जाता है अतः द्वितीय विश्वयुद्ध की सभी गलतियों के लिए हिटलर और मुसोलिनी उत्तरदायी ठहराए गए और आज भी सभी राजनीतिक विद्रूपताओं के लिए ‘हिटलर होना’, ‘फासीवादी होना’ मुहावरे बन गए हैं।

चांसलर बनना

बढ़ते हुए प्रभाव को देखकर उन्हे चांसलर बनने के लिए आमंत्रित किया गया। सन् 1933 में उन्होंने इस पद को स्वीकार कर लिया। 1934 में उन्होने राष्ट्रपति और चांसलर के पद को मिलाकर एक कर दिया। और उन्होंने राष्ट्र नायक की उपाधि धारण की। इस प्रकार उनके हाथों में समस्त सत्ता केंद्रित हो गई। इस तरह अपनी विशिष्ट योग्यता के बल पर निरंतर प्रगति करता गया। और विश्व में महान व्यक्ति के रूप में उभर कर सामने आया। हिटलर तथा उनकी पार्टी के उत्थान के निम्नलिखित कारण थे जो इस प्रकार है।

वर्साय की संधि[संपादित करें]

प्रथम विश्व युद्ध के पश्चात यूरोप राष्ट्रों ने वर्साय की संधि की। जिसका प्रमुख उद्देश्य जर्मनी को कुचलना था। इसके द्वारा जर्मनी को आर्थिक राजनीतिक तथा अंतराष्ट्रीय राजनीति की दृष्टि से पुर्णत: पंगु बना दिया गया। वस्तुत: वर्साय की संधि जर्मनी की सारी तकलीफों की जड़ थी। जर्मन निवासी अपने प्राचीन गौरव को पुन: प्राप्त करना चाहते थे। और वह एक ऐसे नेता की तलाश में थे जो उनके राष्ट्र कलंक को मिटाकर जर्मनी के गौरव का पुर्ण उत्थान कर सके। हिटलर के व्यक्तित्व में उन्हें ऐसा नेता की तस्वीर दिखाई दी। उन्हें यह विश्वास हो गया की हिटलर के नेतृत्व में ही जर्मनी का उत्थान संभव है। हिटलर ने वर्साय की संधि की आलोचना करनी शुरु कर दी और लोगों के हृदय में इसके प्रति नफरत पैदा कर दी। उन्होंने जर्मन जाति को एक राजनीतिक सूत्र में बाँध कर लोगों के समक्ष जर्मन निर्माण का प्रस्ताव रखा। वे भाषण देने की कला में प्रवीण थे उनकी वाणी जादू का काम करती थी। यह कहा जा सकता है कि हिटलर ने अपनी जुबान की ताकत से जर्मनी की सत्ता हथिया ली।
जातीय परम्परा
जर्मन जाति की निजी परंपरा और प्रकृति ने भी हिटलर के उत्थान में सहयोग प्रदान किया। जर्मन स्वभावत: वीर और अनुशासन प्रिय होते हैं। अत: उन्होंने हिटलर के अधिनायकवाद को स्वीकार कर लिया। हिटलर ने जनता के समक्ष कोई नवीन कार्यक्रम नहीं रखा उन्होने वहीं किया जो व्हीगल, कॉन्ट और किक्टे आदि कर चुके थे। उनकी विचारधारा संपूर्ण जर्मन विचारधारा का निचोड़ थी इसलिए जनता ने उन्हें स्वीकार कर लिया।
आर्थिक संकट
जर्मनी में आर्थिक संकट के चलते भी हिटलर का उत्थान हुआ। वर्साय की संधि के फलस्वरुप जर्मनी की आर्थिक स्थिति काफी खराब हो गई थी। हिटलर ने जनता को पूँजीपतियों और यहुदियों के खिलाफ भड़काना शुरु किया। 1930 में जर्मनी ने 50 लाख से अधिक व्यक्ति बेकार हो गए थे। वे सभी हिटलर के समर्थक बन गए। अत: यह कहा जा सकता है कि आर्थिक संकट के चलते हिटलर तथा उसकी पार्टी को काफी सफलता मिली।
यहूदी विरोधी भावना
इस समय संपूर्ण जर्मनी में यहुदियों के खिलाफ असंतोष फैला हुआ था। जर्मनी की पराजय के लिए यहुदियों को ही उत्तरदायी ठहराया जा रहा था। हिटलर इसे भली- भांती जानता था। जनता की कद्र करते हुए उन्होंने यहुदियों को देश से निकालने की घोषणा की। हिटलर की इस घोषणा से जनता ने इसका साथ देना शुरु किया।
साम्यवाद का विरोध
हिटलर के उदय का एक महत्वपूर्ण कारण साम्यवाद का विरोध भी था। हिटलर ने साम्यवादियों के खिलाफ नारा बुलंद किया और जनता का दिल जीत लिया। इस समय पूँजीपति, जमींदार, पादरी सभी साम्यवाद के बढ़ते हुए प्रभाव से आतंकित था। वे जर्मनी को साम्यवाद के चंगुल से मुक्त कराना चाहते थे। इसलिए हिटलर ने साम्यवाद की तीखी आलोचना की और इसके विकल्प में राष्ट्रीय समाजवाद का नारा बुलंद किया जो नाज़ी दल का दूसरा रूप था।
संसदीय परंपरा का अभाव
वहाँ के संसदीय शासन में दुगुर्णों के चलते भी जनता में काफी असंतोष था। वे इस व्यवस्था को समाप्त करना चाहते थे। जब राजनीतिक व्यवस्था में लोगों का विश्वास घट जाता है तो तानाशाही के लिए रास्ता साफ हो जाता है जर्मन के साथ भी यही बात हुई। संसदीय शासन प्रणाली में जब उनका विश्वास समाप्त हो गया तो उन्होंने हिटलर का साथ देना शुरु किया।
जर्मनी जनता की प्रवृति
जर्मनी जनता की अभिरुचि सैनिक जीवन में थी। वे स्वभाव से वीर और सैनिक प्रवृत्ति के थे परन्तु वर्साय की संधि के द्वारा वहाँ की सैनिक संख्या घटा दी गई थी। फलत: काफी संख्या में लोग बेरोजगार हो चुके थे। हिटलर तथा उनकी पार्टी के सदस्य जनता की स्थिति से भली भांति परिचित थे। अत: जब उन्होंने स्वंयसेवक सेना का गठन किया तो भारी संख्या में युवक उसमें भर्ती होने लगे। इससे बेकारी की समस्या का भी समाधान हुआ और हिटलर को उत्थान करने का मौका मिला।

हिटलर का व्यक्तित्व[संपादित करें]

उपर्युक्त सभी कारणों के अतिरिक्त हिटलर के अभ्युदय का महत्वपूर्ण कारण स्वयं उनका प्रभावशाली एवं आकर्षक व्यक्तित्व था वे उच्च कोटी के वक्ता थे। वे भाषण की कला में निपुण थे। उनकी वाणी जादू का काम करती थी और जनता का दिल जीत लेती थी। आधुनिक युग में प्रचार का काफी महत्व है। प्रचार वह शक्ति है जो झूठ को सच और सच को झूठ बना सकती है। संयोगवश हिटलर को एक महान प्रचारक मिल गया था। जिसका नाम था गोबुल्स उनका सिद्धांत था कि झूठी बातों को इतना दुहराओं कि वह सत्य बन जाए। इस तरह उनकी सहायता से जनता का दिल जीतना हिटलर के लिए आसान हो गया। इस तरह हम देखते हैं कि हिटलर और उनकी पार्टी के अभ्युदय के अनेक कारण थे। जिनमें हिटलर का व्यक्तित्व एक महत्वपूर्ण कारण था और अपने व्यक्तित्व का उपयोग कर उन्होंने वर्साय संधि की त्रुटियों से जनता को अवगत कराया उन्हें अपना समर्थक बना लिया। यह ठीक है कि युद्धोतर जर्मन आर्थिक दृष्टि से बिल्कुल पंगु हो गया था, वहाँ बेकारी और भुखमरी आ गई थी परन्तु हिटलर एक दूरदर्शी राजनितिज्ञ था। और उसने परिस्थिति से लाभ उठाकर राजसत्ता पर अधिपत्य कायम कर लिया।एक राजनीतिक विचारधारा जिसे जर्मनी के तनाशाह हिटलर ने प्रारंभ किया था। हिटलर का मानना था कि जर्मन आर्य है और विश्व में सर्वश्रेष्ठ हैं। इसलिए उनको सारी दुनिया पर राज्य करने का अधिकार है। अपने तानाशाहीपूर्ण आचरण से उसने विश्व को द्वितीय विश्व युद्ध में झोंक दिया था। १९४५ में हिटलर के मरने के साथ ही नाज़ीवाद का अंत हो गया परन्तु ‘नाज़ीवाद’ और ‘हिटलर होना’ मानवीय क्रूरता के पर्याय बन कर आज भी भटक रहे है।
हिटलर का जन्म १८८९ में आस्ट्रिया में हुआ था। १२ वर्ष की आयु में उसके पिता का निधन हो गया था जिससे उसे आर्थिक संकटों से जूझना पड़ा। उसे चित्रकला में बहुत रूचि थी। उसने चित्रकला पढ़ने के लिए दो बार प्रयास किये परन्तु उसे प्रवेश नहीं मिल सका। बाद में उसे मजदूरी तथा घरों में पेंट करके जीवन यापन करना पड़ा। प्रथम विश्व युद्ध प्रारंभ होने पर वह सेना में भरती हो गया। वीरता के लिए उसे हल क्रास से सम्मानित किया गया। युद्ध समाप्त होने पर वह एक दल जर्मन लेबर पार्टी में सम्मिलित हो गया जिसमें मात्र २०-२५ लोग थे। हिटलर के भाषणों से अल्प अवधि में ही उसके सदस्यों की संख्या हजारों में पहुँच गई। पार्टी का नया नाम रखा गया ‘नेशनल सोशलिस्ट जर्मन लेबर पार्टी’। जर्मन में इसका संक्षेप में नाम है ‘नाज़ी पार्टी’। हिटलर द्वारा प्रतिपादित इसके सिद्धांत ही नाज़ीवाद कहलाते हैं।
हिटलर ने जर्मन सरकार के विरुद्ध विद्रोह का प्रयास किया। उसे बंदी बना लिया गया और ५ वर्ष की जेल हुई। जेल में उसने अपनी आत्म कथा ‘मेरा संघर्ष’ लिखी। इस पुस्तक में उसके विचार दिए हुए हैं। इस पुस्तक की लाखों प्रतियाँ शीघ्र बिक गईं जिससे उसे बहुत ख्याति मिली। उसकी नाज़ी पार्टी को पहले तो चुनावों में कम सीटें मिलीं परन्तु १९३३ तक उसने जर्मनी की सत्ता पर पूरा अधिकार कर लिया और एक छत्र तानाशाह बन गया। उसने अपने आसपास के देशों पर कब्जे करने शूरू कर दिए जिससे दूसरा विश्व युद्ध प्रारम्भ हो गया। वह यहूदियों से बहुत घृणा करता था। उसने उन पर बहुत अत्याचार किये, कमरों में ठूँसकर विषैली गैस से हजारों लोग मार दिए गए। ६ वर्षों के युद्ध के बाद वह हार गया और उसने अपनी प्रेमिका, जिसके साथ उसने एक-दो दिन पहले ही विवाह किया था, के साथ गोली मारकर आत्महत्या कर ली।

नाज़ीवाद के उदय के कारण[संपादित करें]

प्रथम विश्व युद्ध 1914 से 1918 तक चला। इसमें जर्मनी हार गया। युद्ध के कारण उसकी बहुत क्षति हुई। इन सब के ऊपर ब्रिटेन, फ़्राँस आदि मित्र राष्ट्रों ने उस पर बहुत अधिक दंड लगा दिए। उसकी सेना बहुत छोटी कर दी, उसकी प्रमुख खदानों पर कब्ज़ा कर लिया तथा इतना अधिक अर्थ दंड लगा दिया कि अनेक वर्षों तक अपनी अधिकांश कमाई देने के बाद भी कर्जा कम नहीं हो रहा था। १९१४ में एक डालर = ४.२ मार्क था जो १९२१ में ६० मार्क, नवम्बर १९२२ में ७०० मार्क,जुलाई १९२३ में एक लाख ६० हजार मार्क तथा नवम्बर १९२३ में एक डालर = २५ ख़रब २० अरब मार्क के बराबर हो गया। अर्थात मार्क लगभग शून्य हो गया जिससे मंदी, मँहगाई और बेरोजगारी का अभूतपूर्व संकट पैदा हो गया। उस समय चुनी हुई सरकार के लोग अपना जीवन तो ठाट-बाट से बिता रहे थे परन्तु देश की समस्याएँ कैसे हल करें, उन्हें न तो इसका ज्ञान था और न ही बहुत चिंता थी। ऐसे समय में हिटलर ने अपने ओजस्वी भाषणों से जनता को समस्याएँ हल करने का पूरा विश्वास दिलाया। इसके साथ ही उसके विशेष रूप से प्रशिक्षित कमांडों, विरोधियों को मारने तथा आतंक फ़ैलाने के काम भी कर रहे थे जिससे उसकी पार्टी को धीरे- धीरे सत्ता में भागीदारी मिलती गई और एक बार चांसलर (प्रधान मंत्री) बनने के बाद उसने सभी विरोधियों का सफाया कर दिया और संसद की सारी शक्तियाँ अपने हाथों में केन्द्रित कर लीं। उसके बाद वे देश के राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री सबकुछ बन गए। उन्हें फ्यूरर कहा जाता था।

नाज़ीवाद का आधार[संपादित करें]

हिटलर से 11वर्ष पूर्व इटली के प्रधानमंत्री मुसोलिनी भी अपने फ़ासीवादी विचारों के साथ तानाशाही पूर्ण शासन चला रहे थे। दोनों विचारधाराएँ समग्र अधिकारवादी, अधिनायकवादी, उग्र सैनिकवादी, साम्राज्यवादी, शक्ति एवं प्रबल हिंसा की समर्थक, लोकतंत्र एवं उदारवाद की विरोधी, व्यक्ति की समानता, स्वतंत्रता एवं मानवीयता की पूर्ण विरोधी तथा राष्ट्रीय समाजवाद (अर्थात राष्ट्र ही सब कुछ है, व्यक्ति के सारे कर्तव्य राष्ट्रीय हित में कार्य करने में हैं) की कट्टर समर्थक हैं। ये सब समानताएं होते हुए भी जर्मनी ने अपने सिद्धांत फासीवाद से नहीं लिए। इसका विधिवत प्रतिपादन १९२० में गाटफ्रीड ने किया था जिसका विस्तृत विवरण हिटलर ने अपनी पुस्तक ‘मेरा संघर्ष’ में किया तथा १९३० में ए॰ रोज़नबर्ग ने पुनः इसकी व्याख्या की थी। इस प्रकार हिटलर के सत्ता में आने के पूर्व ही नाज़ीवाद के सिद्धांत स्पष्ट रूप से लोगों के सामने थे जबकि अपने कार्यों को सही सिद्ध करने के लिए मुसोलिनी ने सत्ता में आने के बाद अपने फ़ासीवादी सिद्धांतों को प्रतिपादित किया था। इतना ही नहीं जर्मनों की श्रेष्ठता का वर्णन अनेक विद्वान् करते आ रहे थे और १०० वर्षों से भी अधिक समय से जर्मनों के मन में अपनी श्रेष्ठता के विचार पनप रहे थे जिन्हें हिटलर ने मूर्त रूप प्रदान किया।

नाज़ीवाद के सिद्धांत[संपादित करें]

प्रजातिवाद : १८५४ में फ्रेंच लेखक गोबिनो ने १८५४ तथ 1884 में अपने निबंध ‘मानव जातियों की असमानता’ में यह सिद्धांत प्रतिपादित किया था कि विश्व की सभी प्रजातियों में गोरे आर्य या ट्यूटन नस्ल सर्वश्रेष्ठ है। १८९९ में ब्रिटिश लेखक चैम्बरलेन ने इसका अनुमोदन किया। जर्मन सम्राट कैसर विल्हेल्म द्वितीय ने देश में सभी पुस्तकालयों में इसकी पुस्तक रखवाई तथा लोगों को इसे पढ़ने के लिए प्रेरित किया। अतः जर्मन स्वयं को पहले से ही सर्व श्रेष्ठ मानते थे। नाज़ीवाद में इस भावना को प्रमुख स्थान दिया गया।
हिटलर ने यह विचार रखा कि उनके अतिरिक्त अन्य गोरे लोग भी मिश्रित प्रजाति के हैं अतः जर्मन लोगों को यह नैसर्गिक अधिकार है कि वे काले एवं पीले लोगों पर शासन करें, उन्हें सभ्य बनाएं इससे हिटलर ने यह स्वयं निष्कर्ष निकाल लिया कि उसे अन्य लोगों के देशों पर अधिकार करने का हक़ है। उसने लोगों का आह्वान किया कि श्रेष्ठ जर्मन नागरिक शुद्ध रक्त की संतान उत्पन्न करें। जर्मनी में अशक्त एवं रोगी लोगों के संतान उत्पन्न करने पर रोक लगा दी गई ताकि देश में भविष्य सदैव स्वस्थ एवं शुद्ध रक्त के बच्चे ही जन्म लें।
हिटलर का मानना था कि यहूदी देश का भारी शोषण कर रहे हैं। अतः वह उनसे बहुत घृणा करता था। परिणाम स्वरूप सदियों से वहाँ रहने वाले यहूदियों को अमानवीय यातनाएं दे कर मार डाला गया और उनकी संपत्ति राजसत कर ली गई। अनेक यहूदी देश छोड़ कर भाग गए। उस भीषण त्रासदी ने यहूदियों के सामने अपना पृथक देश बनाने की चुनौती उत्पन्न कर दी जिससे इस्रायल का निर्माण हुआ।
राज्य सम्बन्धी विचार : नाज़ीवाद में राज्य को साधन के रूप में स्वीकार किया गया है जिसके माध्यम से लोग प्रगति करेंगे। हिटलर के मतानुसार राष्ट्रीयता पर आधारित राज्य ही शक्तिशाली बन सकता है क्योंकि उसमें नस्ल, भाषा, परंपरा, रीति-रिवाज आदि सभी सामान होने के कारण लोगों में सुदृढ़ एकता और सहयोग की भावना होती है जो विभिन्न भाषा, धर्म एवं प्रजाति के लोगों में होना संभव नहीं है। हिटलर ने सभी जर्मनों को एक करने के लिए अपने पड़ोसी देशों आस्ट्रिया, चेकोस्लोवाकिया आदि के जर्मन बहुल इलाकों को उन देशों पर दबाव डाल कर जर्मनी में मिला लिया तथा बाद में उनके पूरे देश पर ही कब्ज़ा कर लिया। अनेक देशों पर कब्ज़ा करने को नाजियों ने इसलिए आवश्यक बताया कि सर्वश्रेष्ठ होते हुए भी जर्मनों के पास भूमि एवं संसाधन बहुत कम हैं जबकि उनकी आबादी बढ़ रही है। समुचित जीवन निर्वाह के लिए अन्य देशों पर अधिकार करने के अतिरिक्त और कोई विकल्प नहीं है। इसलिए हिटलर एक के बाद दूसरे देश पर कब्जे करता चला गया।
जर्मनी में राज्य का अर्थ था हिटलर। वह देश, शासन, धर्म सभी का प्रमुख था। हिटलर को सच्चा देवदूत कहा जाता था। बच्चों को पाठशाला में पढ़ाया जाता था – “ हमारे नेता एडोल्फ़ हिटलर, हम सब आप से प्रेम करते हैं, आपके लिए प्रार्थना करते हैं, हम आपका भाषण सुनना चाहते हैं। हम आपके लिए कार्य करना चाहते हैं।” हिटलर ने अपने कमांडों के द्वारा आतंक का वातावरण पहले ही निर्मित कर दिया था। उसे जैसे ही सत्ता में भागीदारी मिली, उसने सर्व प्रथम विपक्षी दलों का सफाया कर दिया। एक राष्ट्र, एक दल, एक नेता का सिद्धांत उसने बड़ी क्रूरता पूर्वक लागू किया था। उसके विरोध का अर्थ था मृत्यु।

नाज़ीवाद के उदय के कारण[संपादित करें]

व्यक्ति का स्थान : नाज़ी कान्त तथा फिख्टे के इस विचार को मानते थे कि व्यक्ति के लिए सच्ची स्वतंत्रता इस बात में निहित है कि वह राष्ट्र के कल्याण के लिए कार्य करे। उनका कहना था कि एक जर्मन तब तक स्वतन्त्र नहीं हो सकता जब तक जर्मनी राजनीतिक और आर्थिक दृष्टि से स्वतन्त्र न हो जो उस समय वह वार्साय संधि की शर्तों के अनुसार नहीं था। नाजियों का एक ही नारा था कि व्यक्ति कुछ नहीं है, राष्ट्र सब कुछ है। अतः व्यक्ति को अपने सभी हित राष्ट्र के लिए बलिदान कर देने चाहिए। मित्र देशों के चंगुल से जर्मनी को मुक्त करने के लिए उस समय यह भावना आवश्यक भी थी। परन्तु नाजियों ने इसका विस्तार जीवन के सभी क्षेत्रों – शिक्षा, धर्म, साहित्य, संस्कृति, कलाओं, विज्ञान, मनोरंजन,अर्थ-व्यवस्था आदि सभी क्षेत्रों में कर दिया था। इससे सभी नागरिक नाज़ियो के हाथ के कठपुतले से बन गए थे।
बुद्धिवाद का विरोध : शापेनहार, नीत्शे, जेम्स, सोरेल, परेतो जैसे अनेक दार्शनिकों ने बुद्धिवाद के स्थान पर लोगों की सहज बुद्धि (इंस्टिंक्ट), इच्छा शक्ति,और अंतर दृष्टि (इंट्यूशन)को उच्च स्थान दिया था। नाज़ी भी इसी विचार को मानते थे कि व्यक्ति अपनी बुद्धि से नहीं भावनाओं से कार्य करता है। इसलिए अधिकांश पढ़े-लिखे और सुशिक्षित व्यक्ति भी मूर्ख होते हैं। उनमें निष्पक्ष विचार करने की क्षमता नहीं होती है। वे अपने मामलों में भी बुद्धि पूर्वक विचार नहीं करते हैं। वे भावनाओं तथा पूर्व निर्मित अवधारणाओं के अधर पर कार्य करते हैं। इसलिए जनता को यदि अपने अनुकूल कर लिया जाये तो उस्से बड़े से बड़े झूठ को भी सत्य मनवाया जा सकता है। बुद्धि का उपयोग करके लोग परस्पर असहमति तो बढ़ा सकते हैं परन्तु किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुँच सकते हैं। अतः बुद्धिमानों को साथ लेकर एक सफल एवं शक्ति शाली संगठन नहीं बनाया जा सकता है। शक्ति शाली राष्ट्र निर्माण के लिए यह आवश्यक है कि लोगों को बुद्धमान बनाने के स्थान पर उत्तम नागरिक बनाया जाना चाहिए। उनके लिए तर्क एवं दर्शन के स्थान पर शारीरिक, नैतिक एवं औद्योगिक शिक्षा देनी चाहिए। उच्च शिक्षा केवल प्रजातीय दृष्टि से शुद्ध जर्मनों को ही दी जानी चाहिए जो राष्ट्र के प्रति अगाध श्रद्धा रखते हों। नेताओं को भी उतना ही बुद्धिवादी होना चाहिए कि वह जनता की मूर्खता से लाभ उठा सके और अपने कार्य क्रम बना सकें। अबुद्धिवाद से नाज़ियों ने अनेक महत्वपूर्ण परिणाम निकाले और अपनी पृथक राजनीतिक विचारधारा स्थापित की।
लोकतंत्र विरोधी : प्लेटो की भांति हिटलर भी लोकतंत्र का आलोचक था। उसके अनुसार अधिकांश व्यक्ति बुद्धि शून्य, मूर्ख, कायर और निकम्मे होते हैं जो अपना हित नहीं सोच सकते हैं। ऐसे लोगों का शासन कुछ भद्र लोगों द्वारा ही चलाया जाना चाहिए।
साम्यवाद विरोधी : साम्यवाद मानता है कि अर्थ या धन ही सभी कार्यों का प्रेरणा स्रोत है। धन के लिए ही व्यक्ति कार्य करता है और उसी के अनुसार सामाजिक तथा राजनीतिक व्यवस्थाएं निर्मित होती हैं। परन्तु अधिकांश व्यक्ति बुद्धिहीन होने के कारण अपना हित सोचने में असमर्थ होते हैं। उनके अनुसार साम्यवाद वर्तमान से भी बुरे शोषण को जन्म देगा।
अंध श्रद्धा (सोशल मिथ) : सोरेल की भांति हिटलर भी यही मानता था कि व्यक्ति बुद्धि और विवेक के स्थान पर अंध श्रद्धा से कार्य करता है। यह अंध श्रद्धा लोगों को राष्ट्र के लिए बड़े से बड़ा बलिदान करने के लिए प्रोत्साहित कर सके। नाज़ियों ने जर्मन लोगों में अनेक प्रकार की अंध श्रद्धाएँ उत्पन्न कीं और उन्हें राष्ट्र निर्माण में तत्पर कर दिया।
शक्ति और हिंसा का सिद्धांत : नाज़ियों ने लोगो में अन्द्ध श्रद्धा उत्पन्न कर दी कि जो लड़ना नहीं चाहता उसे इस दुनियां में जीवित रहने का कोई अधिकार नहीं है। इस सिद्धांत को प्रतिपादित करना हिटलर की मजबूरी भी थी क्योंकि प्रथम विश्व युद्ध के बाद हुई वार्साय की संधि में उस पर जो दंड एवं प्रतिबन्ध लगे थे, वार्ता द्वारा उससे बाहर निकलने का कोई मार्ग नहीं था। उन परिस्थितियों में युद्ध ही एक मात्र रास्ता था और उसके लिए सभी जर्मन वासियों का सहयोग आवश्यक था। इसलिए लोगों ने उसे सहयोग भी दिया।
अर्थव्यवस्था: वह साम्यवाद का विरोधी था इसलिए जर्मनी के पूंजीपतियों ने उसे पूरा सहयोग दिया। परन्तु उसका पूंजीवाद स्वच्छंद नहीं था, उसे मनमानी लूट और धन अर्जन का अधिकार नहीं था। वह उसी सीमा तक मान्य था जो नाज़ियों के सिद्धांत और जर्मन राष्ट्र के हित के अनुकूल हो।
उसने उत्पादन बढ़ने के लिए सभी तरह के आंदोलनों, प्रदर्शनों और हड़तालों पर प्रतिबन्ध लगा दिया था। सभी वर्गों के संगठन बना दिए गए थे जो विवाद होने पर न्यायोचित समाधान निकाल लेते थे ताकि किसी का भी अनावश्यक शोषण न हो। अधिक रोजगार देने के लिए उसने पहले एक परिवार एक नौकरी का सिद्धांत लागू किया, फिर अधिक वेतन वाले पदों का वेतन घटा कर एक के स्थान पर दो व्यक्तियों को रोजगार दिया। इस प्रकार उसने दो वर्षों में ही अधिकांश लोगों, जिनकी संख्या लाखों में थी, को रोजगार उपलब्ध कराये। इससे शिक्षा, व्यवसाय, कृषि, उद्योग, विज्ञान, निर्माण आदि सभी क्षेत्रों में जर्मनी ने अभूतपूर्ण उन्नति कर ली। १९३३ से लेकर १९३९ तक छः वर्षों में उसकी प्रगति का अनुमान इस तथ्य से लगाया जा सकता है कि जिस जर्मनी का कोष रिक्त हो चुका था, देश पर अरबों पौंड का कर्जा था, प्राकृतिक संसाधनों पर मित्र देशों ने कब्ज़ा कर लिया था और उसकी सेना नगण्य रह गई थी, वही जर्मनी विश्व के बड़े राष्ट्रों के विरुद्ध एक साथ आक्रमण करने की स्थिति में था, सभी देशों में हिटलर का आतंक व्याप्त था और वह इंग्लैंड, रूस तक अपने देश में बने विमानों से जर्मनी में ही निर्मित बड़े-बड़े बम गिरा रहा था। मात्र छः वर्षों में उसने इतना धन एवं शक्ति अर्जित कर ली थी जो अनेक वर्षों में भी संभव नहीं थी।
स्वयं को सर्वशक्तिमान समझने के कारण हिटलर युद्ध हार गया, उसने आत्म हत्या कर ली। पराजित हुआ व्यक्ति ही इतिहास में गलत माना जाता है अतः द्वितीय विश्वयुद्ध की सभी गलतियों के लिए हिटलर और मुसोलिनी उत्तरदायी ठहराए गए और आज भी सभी राजनीतिक विद्रूपताओं के लिए ‘हिटलर होना’, ‘फासीवादी होना’ मुहावरे बन गए हैं।

चांसलर बनना[संपादित करें]

बढ़ते हुए प्रभाव को देखकर उन्हे चांसलर बनने के लिए आमंत्रित किया गया। सन् 1933 में उन्होंने इस पद को स्वीकार कर लिया। 1934 में उन्होने राष्ट्रपति और चांसलर के पद को मिलाकर एक कर दिया। और उन्होंने राष्ट्र नायक की उपाधि धारण की। इस प्रकार उनके हाथों में समस्त सत्ता केंद्रित हो गई। इस तरह अपनी विशिष्ट योग्यता के बल पर निरंतर प्रगति करता गया। और विश्व में महान व्यक्ति के रूप में उभर कर सामने आया। हिटलर तथा उनकी पार्टी के उत्थान के निम्नलिखित कारण थे जो इस प्रकार है।

वर्साय की संधि[संपादित करें]

प्रथम विश्व युद्ध के पश्चात यूरोप राष्ट्रों ने वर्साय की संधि की। जिसका प्रमुख उद्देश्य जर्मनी को कुचलना था। इसके द्वारा जर्मनी को आर्थिक राजनीतिक तथा अंतराष्ट्रीय राजनीति की दृष्टि से पुर्णत: पंगु बना दिया गया। वस्तुत: वर्साय की संधि जर्मनी की सारी तकलीफों की जड़ थी। जर्मन निवासी अपने प्राचीन गौरव को पुन: प्राप्त करना चाहते थे। और वह एक ऐसे नेता की तलाश में थे जो उनके राष्ट्र कलंक को मिटाकर जर्मनी के गौरव का पुर्ण उत्थान कर सके। हिटलर के व्यक्तित्व में उन्हें ऐसा नेता की तस्वीर दिखाई दी। उन्हें यह विश्वास हो गया की हिटलर के नेतृत्व में ही जर्मनी का उत्थान संभव है। हिटलर ने वर्साय की संधि की आलोचना करनी शुरु कर दी और लोगों के हृदय में इसके प्रति नफरत पैदा कर दी। उन्होंने जर्मन जाति को एक राजनीतिक सूत्र में बाँध कर लोगों के समक्ष जर्मन निर्माण का प्रस्ताव रखा। वे भाषण देने की कला में प्रवीण थे उनकी वाणी जादू का काम करती थी। यह कहा जा सकता है कि हिटलर ने अपनी जुबान की ताकत से जर्मनी की सत्ता हथिया ली।
जातीय परम्परा
जर्मन जाति की निजी परंपरा और प्रकृति ने भी हिटलर के उत्थान में सहयोग प्रदान किया। जर्मन स्वभावत: वीर और अनुशासन प्रिय होते हैं। अत: उन्होंने हिटलर के अधिनायकवाद को स्वीकार कर लिया। हिटलर ने जनता के समक्ष कोई नवीन कार्यक्रम नहीं रखा उन्होने वहीं किया जो व्हीगल, कॉन्ट और किक्टे आदि कर चुके थे। उनकी विचारधारा संपूर्ण जर्मन विचारधारा का निचोड़ थी इसलिए जनता ने उन्हें स्वीकार कर लिया।
आर्थिक संकट
जर्मनी में आर्थिक संकट के चलते भी हिटलर का उत्थान हुआ। वर्साय की संधि के फलस्वरुप जर्मनी की आर्थिक स्थिति काफी खराब हो गई थी। हिटलर ने जनता को पूँजीपतियों और यहुदियों के खिलाफ भड़काना शुरु किया। 1930 में जर्मनी ने 50 लाख से अधिक व्यक्ति बेकार हो गए थे। वे सभी हिटलर के समर्थक बन गए। अत: यह कहा जा सकता है कि आर्थिक संकट के चलते हिटलर तथा उसकी पार्टी को काफी सफलता मिली।
यहूदी विरोधी भावना
इस समय संपूर्ण जर्मनी में यहुदियों के खिलाफ असंतोष फैला हुआ था। जर्मनी की पराजय के लिए यहुदियों को ही उत्तरदायी ठहराया जा रहा था। हिटलर इसे भली- भांती जानता था। जनता की कद्र करते हुए उन्होंने यहुदियों को देश से निकालने की घोषणा की। हिटलर की इस घोषणा से जनता ने इसका साथ देना शुरु किया।
साम्यवाद का विरोध
हिटलर के उदय का एक महत्वपूर्ण कारण साम्यवाद का विरोध भी था। हिटलर ने साम्यवादियों के खिलाफ नारा बुलंद किया और जनता का दिल जीत लिया। इस समय पूँजीपति, जमींदार, पादरी सभी साम्यवाद के बढ़ते हुए प्रभाव से आतंकित था। वे जर्मनी को साम्यवाद के चंगुल से मुक्त कराना चाहते थे। इसलिए हिटलर ने साम्यवाद की तीखी आलोचना की और इसके विकल्प में राष्ट्रीय समाजवाद का नारा बुलंद किया जो नाज़ी दल का दूसरा रूप था।
संसदीय परंपरा का अभाव
वहाँ के संसदीय शासन में दुगुर्णों के चलते भी जनता में काफी असंतोष था। वे इस व्यवस्था को समाप्त करना चाहते थे। जब राजनीतिक व्यवस्था में लोगों का विश्वास घट जाता है तो तानाशाही के लिए रास्ता साफ हो जाता है जर्मन के साथ भी यही बात हुई। संसदीय शासन प्रणाली में जब उनका विश्वास समाप्त हो गया तो उन्होंने हिटलर का साथ देना शुरु किया।
जर्मनी जनता की प्रवृति
जर्मनी जनता की अभिरुचि सैनिक जीवन में थी। वे स्वभाव से वीर और सैनिक प्रवृत्ति के थे परन्तु वर्साय की संधि के द्वारा वहाँ की सैनिक संख्या घटा दी गई थी। फलत: काफी संख्या में लोग बेरोजगार हो चुके थे। हिटलर तथा उनकी पार्टी के सदस्य जनता की स्थिति से भली भांति परिचित थे। अत: जब उन्होंने स्वंयसेवक सेना का गठन किया तो भारी संख्या में युवक उसमें भर्ती होने लगे। इससे बेकारी की समस्या का भी समाधान हुआ और हिटलर को उत्थान करने का मौका मिला।

हिटलर का व्यक्तित्

उपर्युक्त सभी कारणों के अतिरिक्त हिटलर के अभ्युदय का महत्वपूर्ण कारण स्वयं उनका प्रभावशाली एवं आकर्षक व्यक्तित्व था वे उच्च कोटी के वक्ता थे। वे भाषण की कला में निपुण थे। उनकी वाणी जादू का काम करती थी और जनता का दिल जीत लेती थी। आधुनिक युग में प्रचार का काफी महत्व है। प्रचार वह शक्ति है जो झूठ को सच और सच को झूठ बना सकती है। संयोगवश हिटलर को एक महान प्रचारक मिल गया था। जिसका नाम था गोबुल्स उनका सिद्धांत था कि झूठी बातों को इतना दुहराओं कि वह सत्य बन जाए। इस तरह उनकी सहायता से जनता का दिल जीतना हिटलर के लिए आसान हो गया। इस तरह हम देखते हैं कि हिटलर और उनकी पार्टी के अभ्युदय के अनेक कारण थे। जिनमें हिटलर का व्यक्तित्व एक महत्वपूर्ण कारण था और अपने व्यक्तित्व का उपयोग कर उन्होंने वर्साय संधि की त्रुटियों से जनता को अवगत कराया उन्हें अपना समर्थक बना लिया। यह ठीक है कि युद्धोतर जर्मन आर्थिक दृष्टि से बिल्कुल पंगु हो गया था, वहाँ बेकारी और भुखमरी आ गई थी परन्तु हिटलर एक दूरदर्शी राजनितिज्ञ था। और उसने परिस्थिति से लाभ उठाकर राजसत्ता पर अधिपत्य कायम कर लिया।